ओ कान्हा अब तो मुरली की
मधुर सुना दो तान
ओ कान्हा अब तो मुरली की
मधुर सुना दो तान !
मैं हूँ तेरी प्रेम दिवानी मुझको
तु पहचान मधुर सुना दो तान..
ओ कान्हा अब तो मुरली की
मधुर सुना दो तान
जब से तुम संग मैंने
अपने नैना जोड़ लिये हैं
क्या मैया क्या बाबुल
सबसे रिश्ते तोड़ लिए हैं
तेरे मिलन को व्याकुल हैं
ये कबसे मेरे प्राण
मधुर सुना दो तान..
ओ कान्हा अब तो मुरली की
मधुर सुना दो तान !
सागर से भी गहरी
मेरे प्रेम की गहराई
लोक लाज कुल की मर्यादा
सज कर मैं तो आई
मेरी प्रीती से ओ निर्मोही
अब ना बनो अनजान
मधुर सुना दो तान..
दूर दूर तक यह भजन पहुंचकर अपने ओर लोगों को आकर्षित कर रहा था!! मंदिर के रास्ते पर दो बड़े-बड़े काले रंग कि विलायती गाड़ियां रास्ते से गुजर रही थी उसमें बैठे शख्स को भजन कि आवाज ने रुकने पर मजबूर किया और , दोनों गाड़ी में बैठे शख्स महंगें कपड़ों में थे और उसकी मुखमंडल आभा अपनी रौबदार होने कि परिचय दे रही थी ,एक उम्रदराज शख्स ने अपनी गाड़ी रुकवाई और उस भजन का पीछा करते हुए दो गाड़ी से उतरे और वो शख्स मंदिर में प्रवेश किया फिर अपने अपने जूते उतार कर मंदिर के सीढ़ियों में चढ़ा और मंदिर के दरवाजे पर आकर खड़े हुए , फिर वो दोनों शख्स मंत्रमुग्ध होकर भजन के बोल सुनने लगे !!
भजन समाप्त हुई तो लोगों कि नजर वो दो शख्स पर पड़ी जो दरवाजे पर हाथ जोड़कर भजन सुन रहे थे , उसकी मौजूदगी से मंदिर में इकठ्ठे लोगों में एक आदमी भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम करके , उन दो शख्स कि ओर आया सफेद कुर्ता पायजामा और काले रंग के हाफ कोट पहने हुए सिर पर सफेद गंवाई पगड़ी पहने ,वो बोले पास आकर दोनों हाथ जोड़कर" खम्मा घणी बड़े हुकुम सा ,आज बहुत दिनों के बाद आपके दर्शन मिले तो साक्षात भगवान के दर्शन हो गए आहों भाग्य मारो , मंदिर प्रांगण में बैठे लोग भी उठ खड़े हुए उस शख्स को देखने और आपस में फुसफुसाने लगे " अरे हरिया आज अचानक बड़े हुकुम सा इस गांव में कैसे रूख किया है तुमने बताया नहीं ,क्या लाल कोठी रहने तो ना आया है..??
काल्लू भाया लाल कोठी बड़े हुकुम सा कोठी देखने आए हैं ,और बेचना होगा तो नौकर चाकर को पता चलता , हर छह महीने में बड़े हुकुम सा अपने मैनेजर साहब को भेजते हैं कोठी कि खैरियत देखने उन लोगों ने कुछ तिमारदारी में कमी देखा तो बड़े हुकुम को साथ लाए हैं ; यह बात हरिया ने कहा!!
बड़े हुकुम के चेहरे पर रौनक आई और होंठों पर मुस्कान देकर जवाब दिया शालिनता से हाथ जोड़कर कहा ; घणी घम्मा सरपंच जी हम बस हवेली से होकर जा रहे थे कि ठाकुर जी कि भजन सुनकर हमसे आगे जाने का मन नहीं हुआ और मंदिर में प्रवेश कर लिया , बहुत ही मनभावन भजन थी , किसकी आवाज है बहुत मीठा भजन है हमने आजतक ऐसा भजन नहीं सुनी!!
सरपंच जी बहुत गदगद हो गए बड़े हुकुम के मुंह से तारीफ सुनकर और तुरंत ही बोले😊 ; यह भजन मेरी पोती गा रही थी ,तभी दूर पाजेब कि घुंघरू कि आवाज आई और सरपंच जी उस ओर देखकर आवाज लगाई ; श्री... श्री बेटा यहां आओ !!
एक लड़की पीले और हरे रंग के लाचा पहनी थी हरे रंग कि चुनरी सिर पर रखी थी और श्री कृष्ण के मूर्ति के सामने प्रणाम कर रही थी ,तभी अपने नाम को पुकारता सुनकर वो जल्दी से पल्टी और बोली ; अभी आई दादा सा फिर श्री ने जल्दी से महंत जी के दिखाए आरती के थाल से आरती लिया और अपने दादा के तरफ आई और दादा के पास आकर खड़ी हुई !!
सरपंच जी ने श्री को देखकर 😊 कहा ; बड़े हुकुम सा यह मेरी पोती श्रीजी है इसने ही भजन गया है और हर रोज मंदिर में भजन गाती है ,इसकी आवाज में भजन सुनने के लिए गांव वाले लालाइत रहते हैं इसलिए रोज भजन संध्या श्री करती है , और श्री ये बड़े हुकुम सा है ,हमारे आसपास के सभी गांव हुकुम सा के बड़ी रियासत में आते हैं ,जाओ धोख दो इन्हें !!
श्रीजी बड़े हुकुम के चेहरे का तेज देखी और उसके होंठों पर मुस्कान देखी और जल्दी से हुकुम सा के पैर छुने लगे
हुकुम सा श्री के दोनों कंधे को पकड़ कर रोकते हुए कहा " नहीं बेटा हम बेटियों से पैर नहीं छुआते इससे लक्ष्मी जी का अपमान समझते हैं हम , आप सरपंच कि पोती हो तो हमारी भी पोती हुई , फिर हुकुम सा ने अपने पैंट के जेब में हाथ डाल कर कुछ नोट निकाला और एक हजार के नोट देकर कहा ; यह आपके लिए हमारी तरफ से आपके मीठा भजन गाने के लिए ,आप जानती हो आपके दादा जी हमारे परम मित्र हुआ करता था हम दोनों बचपन में इस गांव में पढ़ें और खेल कूदें है !!
श्रीजी अपना हाथ नहीं उठाई और मना करते हुए बोली ; नहीं हुकुम दादा सा हमें पैसे नहीं चाहिए ..
पीछे से महंत जी आरती कि थाली लेकर आते हुए कहा ; ले लो बिटिया शाम के आरती का वक्त बड़े हुकुम सा से नेग में पैसे मिल रहा है तो माधव कि कृपा समझकर रख लो , तुमने भी तो बढ़िया भजन सुनाया है ,महंत जी मुस्कान देकर बड़े हुकुम सा के सामने आरती कि थाली आगे किया और कहा; लीजिए आरती बड़े हुकुम सा आज सालों बाद दर्शन हुए आपके सब कुशल मंगल है ना !!
बड़े हुकुम सा ने अपने हाथ का पैसा श्री को पकड़ाकर ; बेटा जी महंत जी भी रूपए रखने कहा है तो रख लो , फिर श्री ने पैसे लिए और वहां से भाग गई , फिर बड़े हुकुम सा और उसके मैनेजर ने आरती लिया और महंत जी के बातों का जवाब दिया ; हां महंत जी सब ठाकुर जी कि आर्शीवाद से घर-बार बिजनेस कुशल मंगल से है ,बहुत दिन हो गए थे हवेली नहीं आया था इसलिए हवेली को देखने आया था ,यहां सभी व्यवस्थाएं सही है कि नहीं पांच साल हो गए हैं मुझे यहां आए , बिजनेस में ऐसा रमा कि मुझे फुर्सत नहीं मिलती थी आने कि अब बड़े पोते अभय ने बिजनेस कि सारी बागडोर अपने कंधे पर उठा लिया है और उसके भाई बहनों ने बिजनेस संभाल लिया है तो मुझे फुर्सत मिल गई फिर इस हवेली कि याद आई तो आज चला आया था ,अब तो आना होता ही रहेगा!!
सरपंच जी ने कहा; बड़े हुकुम सा चलिए ना हमारे घर रास्ते में ही है जलपान करके चले जाना !!
बड़े हुकुम सा ने अपने हाथ जोड़कर कहा; महेंद्र तुम तो जानते ही हो मुझे जयपुर वापस जाने में बहुत समय लगेगा इसलिए आज माफ कर दो फिर कभी आऊंगा तुम्हारे घर ,और हां खाना खा के ही जाऊंगा ,अभी विदा दो मुझे , फिर वो भगवान श्री कृष्ण के आगे हाथ जोड़ा और प्रणाम करके वहां से चला गया !!
कहानी जारी रहेगी 🙏🙏
(Bhumi)
कहानी कि नायिका का परिचय -
श्रीजी अपने परिवार में पहली बेटी जन्म लेकर आई है इसलिए सबकी लाडली है , श्रीजी जब दो वर्ष कि हुई तब से वो दादा के साथ मंदिर में पूजा करते आई थी और मंदिर के महंत से श्री कृष्ण के बाल कथाओं से श्री कृष्ण कि दीवानी बन गई थी फिर जब वो चार साल कि थी तब एक मेले से दादा ने एक गुड्डा दिलाया जो श्रीजी को उसमें श्री कृष्ण दिखाई देती थी तब से लेकर वो आज अठारह साल कि होने को आई थी और वो गुड्डा को माधव नाम से पुकारते हुए अपने साथ रखती है , श्रीजी के घर में कौन-कौन हैं आइए जानें
माता-पिता
सिंह धीरज राजवंशी
श्रीमती इंदुमती राजवंशी
दादा - दादी
श्रीमान महेंद्र राजवंशी
श्रीमती सुहासिनी राजवंशी
चाचा - चाची
श्रीमान मानव सिंह राजवंशी
श्रीमती मयुरी राजवंशी
भाई बहन
बड़े भाई सम्राट राजवंशी और
भाभी श्रीमती समीरा सम्राट राजवंशी और छोटी बहन में श्रीजी राजवंशी और नैंसी राजवंशी !!